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क्या लिखूं एक स्त्री की दुःख भरी गाथा को शब्द न मि

क्या लिखूं एक स्त्री की दुःख भरी गाथा को
शब्द न मिले कभी ऐशी किशी परिभाषा को 
न घर है अपना न कोई घर में रहने वाला अपना
टूटने लगा है हर एक छोटा बड़ा सपना
माँ बनी तो शोचा की सबको ख़ुशी में दे दूंगी
दर्द दूर होंगे सभी सबकी दुवा में ले लुंगी 
पर दर्द सहकर भी सभी ने कोष कर ठुकरा दिया 
मुझे तो न मन अपना मेरे खून पर हक़ जाता लिया 
चार दिन हुए थे हॉस्पिटल से  घर वापस आने के 
कमजोरी अभी बहुत थी निशान जाने पहचाने थे
उस कमजोरी के बीच जाने क्या क्या शुना दिया 
दुःख दिया इतना की फिर से रुला दिया 
एक औरत ही होती है अक्षर औरत की दुश्मन 
जाने क्या क्या बोलकर मेरे दिल को अब दुख दिया
अब तो बच्चो के लिए जीने की ही बीस आशा है
मेरी जिंदगी में तो स्त्री की यही परिभाषा है

©Lalita patni kothari # दर्द है औरत में कई
क्या लिखूं एक स्त्री की दुःख भरी गाथा को
शब्द न मिले कभी ऐशी किशी परिभाषा को 
न घर है अपना न कोई घर में रहने वाला अपना
टूटने लगा है हर एक छोटा बड़ा सपना
माँ बनी तो शोचा की सबको ख़ुशी में दे दूंगी
दर्द दूर होंगे सभी सबकी दुवा में ले लुंगी 
पर दर्द सहकर भी सभी ने कोष कर ठुकरा दिया 
मुझे तो न मन अपना मेरे खून पर हक़ जाता लिया 
चार दिन हुए थे हॉस्पिटल से  घर वापस आने के 
कमजोरी अभी बहुत थी निशान जाने पहचाने थे
उस कमजोरी के बीच जाने क्या क्या शुना दिया 
दुःख दिया इतना की फिर से रुला दिया 
एक औरत ही होती है अक्षर औरत की दुश्मन 
जाने क्या क्या बोलकर मेरे दिल को अब दुख दिया
अब तो बच्चो के लिए जीने की ही बीस आशा है
मेरी जिंदगी में तो स्त्री की यही परिभाषा है

©Lalita patni kothari # दर्द है औरत में कई