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मेरी दुनियाँ मेरे रब मेरे मसीहा मेरे पिता, उनके बि

मेरी दुनियाँ मेरे रब मेरे मसीहा मेरे पिता,
उनके बिना सुलग रही है खुशियों की चिता..!

बिन उनके सब कुछ सूना,
ख़ुशियाँ ख़त्म ग़म बढ़ा कई गुना..!

मेरे लेखन में उनकी ही बातें,
उनके बिन मेरी अधूरी रातें..!

सभी हो गये एकत्रित एक कुनबे से,
मैं हो गया जैसे पराई जातें..!

छा गए हैं दुःख के बादल,
न रहा मैं अब किसी भी क़ाबिल..!

बदल रहें हैं सभी दल बदलूँ से,
मुझे समझे सबसे काहिल..!

टूट सी रही है साँसों की डोर,
डूब रहा मैं न मिले यूँ साहिल..!

छटपटा रहा हूँ प्रेम को उनके,
पल पल फिर रहा हूँ बन के ज़ाहिल..!

©SHIVA KANT
  #cycle #MerePita