मैं बादलों का जबसे घर बन गया हूँ आसमांनों का नया शहर बन गया हूँ। वो अब क्यों ढूँढता है किनारा मुझमें उसी की बदौलत तो में समंदर बन गया हूँ। मुझसे न तो,खुदा से हर इबादत में पूँछ मैं कितनी ही बार तेरा हमदर्द बन गया हूँ। तू तोड़ेगा दिल हर बार ही,मुझे है गुमां और मैं खुद को काटने वाला खंजर बन गया हूँ। दरख्तओं को छोड़ आ जाते है परिंदे सांझ से, मैं खामोशियों का ऐसा मंजर बन गया हूँ। न शब्द पनपते हैं,न ख्वाइशें खिलती हैं, न नमी की कोई बूँद ही मिलती है, मैं खाक- ए -दिल का बंजर बन गया हूँ। अब दर्द तलाशते हैं तुझे ऐ " पारुल " मैं गमों का ऐसा शायर बन गया हूँ।। पारुल शर्मा मैं बादलों का जबसे घर बन गया हूँ आसमांनों का नया शहर बन गया हूँ। वो अब क्यों ढूँढता है किनारा मुझमें उसी की बदौलत तो में समंदर बन गया हूँ। मुझसे न तो,खुदा से हर इबादत में पूँछ मैं कितनी ही बार तेरा हमदर्द बन गया हूँ। तू तोड़ेगा दिल हर बार ही,मुझे है गुमां और मैं खुद को काटने वाला खंजर बन गया हूँ।