मैं तवायफ बावक़ार हूँ साहब। आप हज़रात के महफ़िलों की शान हूँ,साहब अकेली औरत हूँ, लेकिन किसी ने पूछा नहीं, क्या उसका कोई मकान है साहब, पाजेब,सलवार,लाली से सजी मोरनी की तरह नाचती हूँ, सब हमबिस्तर होना तो चाहते हैं, लेकिन किसी ने नहीं पूछा, क्या मैं भी रिश्ते की गरज़गार हूँ,साहब। माँ को देखा था,अब ख़ुद को देख रही हूँ, मुझे लगता है कि तवायफ हूँ,तो बस कोई मज़ाक उड़ाने की सामान का इंतज़ाम हूँ साहब। आपकी गीली मुस्कान,और जबान की लरज अच्छी है, वैसे मैं तो बहुतों की तलबगार हूँ साहब, कहूँगी तो डरती हूँ, कोई सिरफिरा गला ना उतार दे आकर, अब भी अपने लिए थोड़ी सी इज्जत के ख़ातिर अग्यार हूँ साहब, मैं तवायफ बावक़ार हूँ साहब। ✍mahfuz nisar © #Love मैं तवायफ बावक़ार हूँ साहब। आप हज़रात के महफ़िलों की शान हूँ,साहब अकेली औरत हूँ, लेकिन किसी ने पूछा नहीं, क्या उसका कोई मकान है साहब, पाजेब,सलवार,लाली से सजी मोरनी की तरह नाचती हूँ, सब हमबिस्तर होना तो चाहते हैं, लेकिन किसी ने नहीं पूछा,