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क्यों थका सा हार कर बैठा दिले नादान आहें दबाकर मुस

क्यों थका सा हार कर बैठा दिले नादान
आहें दबाकर मुस्कुराना और बा़की है।

घबरा गए आंखों से बहते देखके आंसू,
नम अभी पलकों का होना और बांकी है।

ज़िन्दगी जबतक रहेगी बनेंगे अफसाने,
नाम अपने गम का खजाना और बाकी है।

मुंह मोड़ ना जीवन से यूं शिकवा करेगा वो,
कुछ कर्ज जीवन का चुकाना और बांकी है।

समझ सका है यहां कौन  बेजुबान की दास्तां,
के दिल बोझ सासों का उठाना और बांकी है।

अभी खत्म हुई है कहां हौसले की लड़ाई,
किस्मत का तुझे आजमाना और बांकी है।

Akki..✍️✍️

©Anuj Shaw
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