अजन्मी कविताएँ असंख्य कविताएँ मेरे भीतर कहीं गहराई में छिपी हैं मानो ब्रह्मांड में छिपे असंख्य सूर्य नहीं खोज पाए अब तक जिन्हें हम कोटि कोटि प्रयत्न रोज़ विफल हुए हैं रहे हैं वंचित इनके प्रकाश से जाने कितनी दिव्यता लिए हुए हैं ये सभी मिल जाएं गर तो क्या से क्या हो जाएं हम कितनी ऊर्जा होगी उनमे या होगी सौम्यता रखते होंगे सामर्थ्य सब भस्म कर देने का या सब बिखरा हुआ सहेज लेने का कितनी ही नव कोपलें खिल उठेंगी इनके उदय से अथवा मुरझा जायेंगे खिले हुए पुष्प संझा में करे कोई खोज तो मिले भी उस अतुलित ब्रह्मांड में अथाह सागर की गहराई में सोई हुई हैं मेरी ये समस्त नन्हीं पारियों सी कविताएँ कोटि कोटि मोती छिपे हो सागर के गर्भ में जैसे शीतल शांत हृदय को असीम ठंडक देने वाली कंठहार बन सौन्दर्य का सृजन करती हुई सी प्रेम गीत गाती किसी जलपरी जैसे ममता का बिछौना बिछाए मीठी लोरिया गुनगुनाती सी उतरे कोई सागर के तल तक गोता लगता तो मिले भी ये अनमोल मोती ©के मीनू तोष (२४ अप्रैल २०१९) अजन्मी कविताएँ असंख्य कविताएँ मेरे भीतर कहीं गहराई में छिपी हैं मानो ब्रह्मांड में छिपे असंख्य सूर्य नहीं खोज पाए अब तक जिन्हें हम कोटि कोटि प्रयत्न रोज़ विफल हुए हैं रहे हैं वंचित इनके प्रकाश से जाने कितनी दिव्यता लिए हुए हैं ये सभी