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ये बनारसी शाम कुछ आलस भरी, कुछ उबासियां भरी, कुछ

ये बनारसी शाम

कुछ आलस भरी, कुछ उबासियां भरी,
कुछ शिथिल सी है यह शाम।
कहीं मुस्कान, कहीं थकान,
कहीं कौतूहल भरी है यह शाम।
कभी गुमनाम, कभी बेनाम,
कभी शोहरत भरी है यह शाम।
कहीं गंगा किनारे, कभी अस्सी के नाम,
बिताए जाए कुछ सुकून भरी शाम।
चलो चले, शहरी शोर से दूर।
मिलकर बिताए, एक ख़ामोश शाम।
ख़ूबसूरत सी, मंत्र - मुग्ध सी,
लुभावनी सी यह बनारसी शाम।

©theunnamedpoet99 ये बनारसी शाम

कुछ आलस भरी, कुछ उबासियां भरी,
कुछ शिथिल सी है यह शाम।
कहीं मुस्कान, कहीं थकान,
कहीं कौतूहल भरी है यह शाम।
कभी गुमनाम, कभी बेनाम,
कभी शोहरत भरी है यह शाम।
ये बनारसी शाम

कुछ आलस भरी, कुछ उबासियां भरी,
कुछ शिथिल सी है यह शाम।
कहीं मुस्कान, कहीं थकान,
कहीं कौतूहल भरी है यह शाम।
कभी गुमनाम, कभी बेनाम,
कभी शोहरत भरी है यह शाम।
कहीं गंगा किनारे, कभी अस्सी के नाम,
बिताए जाए कुछ सुकून भरी शाम।
चलो चले, शहरी शोर से दूर।
मिलकर बिताए, एक ख़ामोश शाम।
ख़ूबसूरत सी, मंत्र - मुग्ध सी,
लुभावनी सी यह बनारसी शाम।

©theunnamedpoet99 ये बनारसी शाम

कुछ आलस भरी, कुछ उबासियां भरी,
कुछ शिथिल सी है यह शाम।
कहीं मुस्कान, कहीं थकान,
कहीं कौतूहल भरी है यह शाम।
कभी गुमनाम, कभी बेनाम,
कभी शोहरत भरी है यह शाम।