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ऐक ऐहसास बेटी का शादी होने पर लड़की अपना शरीर तो सा

ऐक ऐहसास बेटी का शादी होने पर लड़की अपना शरीर तो साथ ले जाती है मगर रूह मायके में ही अपने कमरे की अलमारी में छोड़ जाती है। सोचकर कि ये तो मेरा घर है।

पग फेरे पर आती है तो सब कुछ पहले जैसा होता है। वही घर वही आंगन वही सीढ़ियां और वही अलमारी और उसका कमरा सब कुछ वैसा ही। 
अलमारी में बैठी रूह को तस्सली देती है देख तू है न मजे में। माँ-बाबा के पास भाई के प्यार से बंधी और बहन के दुलार में इस कमरे में आराम फरमाती हुई।

दूसरी बार मायके आती है। हर कोई दुलारता है। चाय के बाद अपने कमरे में जाती है तो देखती है कि उसकी रूह अलमारी से बाहर पलंग पर बैठी है। 
एकदम उदास। 
पूछने पर रूह कहती है कि अलमारी के सब कपड़े अब उसके नहीं रहे माँ ने दे दिए इधर-उधर।
ऐक ऐहसास बेटी का शादी होने पर लड़की अपना शरीर तो साथ ले जाती है मगर रूह मायके में ही अपने कमरे की अलमारी में छोड़ जाती है। सोचकर कि ये तो मेरा घर है।

पग फेरे पर आती है तो सब कुछ पहले जैसा होता है। वही घर वही आंगन वही सीढ़ियां और वही अलमारी और उसका कमरा सब कुछ वैसा ही। 
अलमारी में बैठी रूह को तस्सली देती है देख तू है न मजे में। माँ-बाबा के पास भाई के प्यार से बंधी और बहन के दुलार में इस कमरे में आराम फरमाती हुई।

दूसरी बार मायके आती है। हर कोई दुलारता है। चाय के बाद अपने कमरे में जाती है तो देखती है कि उसकी रूह अलमारी से बाहर पलंग पर बैठी है। 
एकदम उदास। 
पूछने पर रूह कहती है कि अलमारी के सब कपड़े अब उसके नहीं रहे माँ ने दे दिए इधर-उधर।