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#तुममें ही कहीं...... कितनी सरल अवधारणा है जीवन


#तुममें ही कहीं......

कितनी सरल अवधारणा है 
जीवन एक यात्रा और हम  इसके यात्री!


परंतु इसकी सरलता 
इसे जीते-जीते 
तब चुक जाती है
जब हम हर यात्रा में 
या तो कहीं कुछ छूट जाते हैं 
या फिर हममें ही
कुछ जुड़ जाता है।
यहाँ मुड़कर देख पाना तो संभव  है
पर  लौटना, अत्यंत दुष्कर!

स्वाभाविक ही था
अपनी सबसे महत्वपूर्ण यात्रा में
मुझमें भी कहीं कुछ 
घट-बढ़ जाना।
मैं तुमसे छूटी नहीं
तुममें ही कहीं छूट गई!


समकालीन दृश्य
सूर्य, चंद्र जैसे अपने
स्थायी घटकों के साथ
गतिमय है
पर मेरी गर्दन के ठीक नीचे 
बाएँ  काँधे पर
आज भी तुम्हारा चुंबन 
निदाघ की दाघ-सा
बहुत तपता है।


कहो, क्या  मैं भी 
मूसलाधार वृष्टि के बावजूद
किसी सूखे  
छोटे-से भूभाग की भाँति
अभी भी तुम्हारे अधरों पर 
कहीं  ठहरी हूँ!!
--सुनीता डी प्रसाद💐💐 
#तुममें ही कहीं......

कितनी सरल अवधारणा है 
जीवन एक यात्रा और हम  इसके यात्री!


परंतु इसकी सरलता

#तुममें ही कहीं......

कितनी सरल अवधारणा है 
जीवन एक यात्रा और हम  इसके यात्री!


परंतु इसकी सरलता 
इसे जीते-जीते 
तब चुक जाती है
जब हम हर यात्रा में 
या तो कहीं कुछ छूट जाते हैं 
या फिर हममें ही
कुछ जुड़ जाता है।
यहाँ मुड़कर देख पाना तो संभव  है
पर  लौटना, अत्यंत दुष्कर!

स्वाभाविक ही था
अपनी सबसे महत्वपूर्ण यात्रा में
मुझमें भी कहीं कुछ 
घट-बढ़ जाना।
मैं तुमसे छूटी नहीं
तुममें ही कहीं छूट गई!


समकालीन दृश्य
सूर्य, चंद्र जैसे अपने
स्थायी घटकों के साथ
गतिमय है
पर मेरी गर्दन के ठीक नीचे 
बाएँ  काँधे पर
आज भी तुम्हारा चुंबन 
निदाघ की दाघ-सा
बहुत तपता है।


कहो, क्या  मैं भी 
मूसलाधार वृष्टि के बावजूद
किसी सूखे  
छोटे-से भूभाग की भाँति
अभी भी तुम्हारे अधरों पर 
कहीं  ठहरी हूँ!!
--सुनीता डी प्रसाद💐💐 
#तुममें ही कहीं......

कितनी सरल अवधारणा है 
जीवन एक यात्रा और हम  इसके यात्री!


परंतु इसकी सरलता