ना सलाम का तू जवाब दें ना ही मुझ से तू कलाम कर ना नज़र को फेर ना झुका नज़र किसी अजनबी सा क़याम कर न ठिठक के चल न झिझक ज़रा न तड़प दिखा ना हो बेकरार ना लबों को खोल न सुलग दिखा न ही ज़िन्दगी मेरे नाम कर किसी अजनबी सा,,,,,,,,,, ना ही लट से खेल न लचक ज़रा ना दबा के छोर है दुपट्टा तेरा न ही होश में तू दिखा मदहोश न सुपुर्द लब को ये जाम कर किसी अजनबी,,,,,,,,,,,,, तेरी ग़फलतें जो ये हिक़मतें हैं अलामतें के तुझे प्यार है ये सदाक़तें हैं बता रही इन्हीं हसरतों का क़याम कर किसी अजनबी,,,,,, ये धुली धुली सी जो आंख है ये भटक रहा जो मिज़ाज है ये लरज़ता सा जो भी ख़्वाब हैं मेरे साथ आ मेरे नाम कर किसी अजनबी ,,,,,,,,,,, मुझे आस है के मेहेर तेरी हैं मेरे लिये है मेरे लिये तेरी चाहतों का गुलाब सुर्ख मुझे सौंप दें मुझे थाम कर किसी अजनबी,,,,,,,,, कभी मुन्तजिर रही राह पर तेरी मन्ज़िलों से वो दूर थी चली आ के अभी जा ए सनम मेरी क़ाविशों को मक़ाम कर किसी अजनबी सा मक़ाम कर शहाब उद्दीन शाह क़न्नौजी #हिन्दी #उर्दू