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बदन पर नई फ़स्ल आने लगी हवा दिल में ख़्वाहिश जगाने

बदन पर नई फ़स्ल आने लगी
हवा दिल में ख़्वाहिश जगाने लगी

कोई ख़ुद-कुशी की तरफ़ चल दिया
उदासी की मेहनत ठिकाने लगी

ख़यालों के तारीक खंडरात में
ख़मोशी ग़ज़ल गुनगुनाने लगी

ज़रा देर बैठे थे तन्हाई में
तेरी याद आँखें दुखाने लगी

जो चुप-चाप रहती थी दीवार पर
वो तस्वीर बातें बनाने लगी

©Parveen kaushik
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