देखते ही तुझे, लफ्ज़ बरबस दिल से निकलने लगते हैं बन जाती है इक कविता, हम तुझमें खोने लगते हैं तेरी आँखों की कशिश, हमें खींचे ले जाती है तेरी ओर हम तुझसे बेइंतहा मोहब्बत करने लगते हैं तेरी मौजूदगी का छाता है हम पर ऐसा जादू हम ख़ुद-ब-ख़ुद शेर कहने लगते हैं तू दिल से हमारे कभी होती नहीं जुदा, हम हर पल तेरी याद में खोए रहते हैं तू हमें लगती है अक्सर इक कविता सी, हम तुझे ही हर लम्हा बांचते रहते हैं कोई कविता लिखूँ तेरी तारीफ़ में या फ़िर कोई गज़ल लिख दूँ तू कहे तो सूरज की किरण कह दूँ तुझे तू कहे तो चाँद की चाँदनी लिख दूँ दिल तो दे ही दिया तुझको सनम ये जान भी तेरे नाम कर दूँ हर पल, हर लम्हा दिल ये दीदार तेरा चाहता है तेरी झील से आँखों में डूबकर खोना चाहता है