सिर्फ़ तारीख़ बदली हैं, लेक़िन मंजर वहीं हैं..... एक-एक क़दम चलना मुश्किल हो गया हैं, सबकी सीने में चुभ रही खंज़र वहीं हैं... दीप नहीं अब लाशें जल रही हैं, लोग थाली नहीं अब छाती पिट रहे हैं।। अब हर एक शक़्स डर की साया में लिपटा, अपने जीवन की भीख मांग रहे हैं। अब हर पल हर शक्श यही सोच रहे हैं कि, ना कब किसकी बारी आ जाये , एक-एक करके सब धरती माँ के गोंद में सो रहे हैं, सिर्फ़ साल बदला हैं, लेक़िन मंजर वहीं हैं, कोई तड़प रहा हैं माँ-पापा की साँसों के लिए तो, कोई पिता बच्चे को तड़पता देख उनकी ज़िंदगी की दुआ कर रहे हैं... काश़ मैं हर चेहरे की हँसी लौटा सकूँ, किसी को दम तोड़ने से बचा सकूँ.... सबकी साँसें वापस लौटा सकूँ।।। ©sanjana-jp #मौत_देखकर #covidindia