लरजते लबों की सुन, अनसुनी पुकार कहीं, पिघलता मैं... हाँ, जमा मैं ही। वेदना विरह की लिये औ' ज्वाला मिलन की बिखरे गेसू-सा व्योम का फैलाव ही भरा-भरा आलिंगन फैलाए आँचल, बाहें पसार जब पुकारती, हाँ पुकारती सजल चक्षुओं में हृदय की हूक तभी उमर-घुमर घटाओं-सा हैं बरसती, बरसती हैं...घटाटोप! tum_aayee_ho @manas_pratyay #tum_aayee_ho © Ratan Kumar