शिर्षक- काला रंग लिखता हूँ मैं, ताकि भारी मन मेरा हल्का हों जाए.. सोचता हूँ थोड़ा सा, ताकि मेरे अन्दर अहसासों और लफ्जों का गहरा सागर भर जाए... मै किसी इंसान पर बिल्कुल भी नहीं लिख सकता हूँ.. क्यों कि मैं डरता हूँ, इस बात से कि उनके बदलते रंगों के आगे, मेरा यह काला रंग कहीं वह फीका ना पड जाए.. वैसे तो काले रंग की एक ख़ासियत होती हैं, कि वह कभी बदलता नहीं हैं, और बदल भी जाए तो कभी भी सजता और सवरता नहीं है... इसीलिए ताकि उसको भी कहीं उन रंगीले लोगों द्वारा, उन रंग बदलने वाले रंगों मे ही ना गिना जाए... -सन्यासी लेखक. ✍️Rohit Narendra Zade #कालारंग