दश्त-ए-सहरा में बहुत देर तक भटकते रहे इंतजार की इंतिहा को हम ख़ुब समझते रहे 'सुर' दिल के अंदर मचाता रहा तुफान कोई हिम्मत-ए-अदा आँखो को नज़र करते रहे लौटकर जाना था मगर पाँवो ने गद्दारी की खौलने लगा जब खून ख़ुद ही से लढ़ते रहे घुम फिर कर यही सवाल ज़ेहन में आता है जब बिछड़ना ही था तो क्यो हम मिलते रहे रब जाने कैसी नजर लग गई हमारे रिश्ते को जुदा हुए वे लोग जिन्हे हम अपना कहते रहे किसी शायर ने क्या ख़ूब कहा है- धूप रहती है न साया देर तक। #देरतक #collab #yqdidi #YourQuoteAndMine Collaborating with YourQuote Didi