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उस चाँद की उदासी हम क्या समझेंगे, वो टपकती छत फ़िर

उस चाँद की उदासी हम क्या समझेंगे,
वो टपकती छत फ़िर ये बारिश हम क्या समझेंगे।

कुछ भी कहीं दिखाई क्यों नही देता,
हाय, ऐ ख़ुदा रोशनी इतनी हम क्या समझेंगे।

वो मामूली बातों में खुलीं चुनौती बचपन की,
अब ये उलझने जिंदगी में हम क्या समझेंगे।

न शरहद न दीवारें बड़ी कोई,
उछल-कूद में मासूम उदासी।
ऐ चाँद हम तैरी उदासी क्या समझेंगे।

वो सुलझा वक़्त बड़ी बैफ़िक्री में घूमता हुआ,
अब तैरी निशानी हम क्या समझेंगे।
उस चाँद की उदासी हम क्या समझेंगे,
वो टपकती छत फ़िर ये बारिश हम क्या समझेंगे।

कुछ भी कहीं दिखाई क्यों नही देता,
हाय, ऐ ख़ुदा रोशनी इतनी हम क्या समझेंगे।

वो मामूली बातों में खुलीं चुनौती बचपन की,
अब ये उलझने जिंदगी में हम क्या समझेंगे।

न शरहद न दीवारें बड़ी कोई,
उछल-कूद में मासूम उदासी।
ऐ चाँद हम तैरी उदासी क्या समझेंगे।

वो सुलझा वक़्त बड़ी बैफ़िक्री में घूमता हुआ,
अब तैरी निशानी हम क्या समझेंगे।
ajitmishra7300

Ajit Mishra

New Creator