उस चाँद की उदासी हम क्या समझेंगे, वो टपकती छत फ़िर ये बारिश हम क्या समझेंगे। कुछ भी कहीं दिखाई क्यों नही देता, हाय, ऐ ख़ुदा रोशनी इतनी हम क्या समझेंगे। वो मामूली बातों में खुलीं चुनौती बचपन की, अब ये उलझने जिंदगी में हम क्या समझेंगे। न शरहद न दीवारें बड़ी कोई, उछल-कूद में मासूम उदासी। ऐ चाँद हम तैरी उदासी क्या समझेंगे। वो सुलझा वक़्त बड़ी बैफ़िक्री में घूमता हुआ, अब तैरी निशानी हम क्या समझेंगे।