"इंतज़ार के लम्हों की तपिश में ये जो जली है हिना, निखर कर लाल सी हाथ से फिर होंठों पर सजी है हिना. बदलते महबूब के इस इश्क़ के मौसम को देख कर, दुबक के घूंघट में फिर दोहरी से इकहरी हो गयी है हिना" #Hina #Broken_Love #Naval_Poetry