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कभी वक़्त मिले तो बताना हमारा किरदार कैसा था...! तु

कभी वक़्त मिले तो बताना हमारा किरदार कैसा था...!
तुम्हारी नजरों में झूठा ही सही मगर प्यार कैसा था..!

तुम्हारे सामने टिकते कहां सूरज चाँद तारे
फिर भी जुर्रत-ए-जर्रा इजहार कैसा था..!

तुम्हारी मासूमियत से भरी मीठी शरारतें 
और तुम्हारी चंचल शोख अदाओं पर हमारा उदगार कैसा था..!

"बड़े खूबसूरत हो तुम" कहते थे तुम्हें 
कभी दर्पण से पूछ लेना तुम्हारा श्रृंगार कैसा था..!

और सुनो,बातें तक नहीं हुई, मुलाक़ात की छोड़ो 
फिर भी तुम्हारे लिए ताउम्र इंतजार कैसा था..! 

हमारी कलम कितनी वफादार थी तुम्हारे लिए
काव्य के उपहार और कलमकार कैसा था..!

मेरे ख्वाबों ख्यालों में हुकूमत केवल तुम्हारी थी
तुम तो रहे हो इस दिल में..बताना दिल-ए-गुलजार कैसा था..!

क्या कभी भी इन निगाहों में तुम्हारे सिवा कोई और था.?
अगर नहीं, तो सच बताना ये दिलदार कैसा था..!

और हो सके तो बताना क्या भूल थी हमारी क्यूँ ना हुए हमारे 
या.. वक़्त और हालात का खिलवाड़ कैसा था..!

©अज्ञात
  #उपहार