महफ़िल में महबूब का हुस्न एक शेर से निखर आया है। ग़ज़ल सुनाने महबूबा को अपने सिर पैर लाया है। मंडराती रहती हैं रूहें जिसकी👁️आँखों में मेरी, और बरस🌨️जाती हैं बनकर के लहू, फिर भींगकर... उस लहू में, हो जाती है तर🌀बतर जब मेरी आत्मा, तो बन जाते हैं🎶गीत, ग़ज़ल, कविता और नज़्म... . . . .