पुरुषों का प्रेम प्रदर्शित नहीं हो पाता उतना जितना होता है ह्रदय में... मैं उसी बन में उसी मेढ़ पर अपना जिस्म बिछाए दूब - घास बन राह देखता रहता हूँ तुम्हारी कि जितनी बार निकलोगी यहां से तो उतनी बार बचा सकूंगा