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पुरुषों का प्रेम प्रदर्शित नहीं हो पाता उतना जितन

पुरुषों का प्रेम
प्रदर्शित नहीं हो पाता 
उतना
जितना होता है ह्रदय में... मैं 
उसी बन में
उसी मेढ़ पर 
अपना जिस्म बिछाए
दूब - घास बन
राह देखता रहता हूँ तुम्हारी
कि जितनी बार निकलोगी यहां से
तो उतनी बार बचा सकूंगा
पुरुषों का प्रेम
प्रदर्शित नहीं हो पाता 
उतना
जितना होता है ह्रदय में... मैं 
उसी बन में
उसी मेढ़ पर 
अपना जिस्म बिछाए
दूब - घास बन
राह देखता रहता हूँ तुम्हारी
कि जितनी बार निकलोगी यहां से
तो उतनी बार बचा सकूंगा