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कमलेश बड़ा शहर हैं ,भीड़ भी हैं भारी पर समझता नहीं क

कमलेश बड़ा शहर हैं ,भीड़ भी हैं भारी
पर समझता नहीं कोई शहरी होने की लाचारी।

भीड़ का हिस्सा होते हुए भी, सब खड़े हैं अकेले,
जितने खरीददार है शहर में , उतने ही हैं व्यापारी।

एक दूसरे को पीछे छोड़ने की होड़ लगी हैं शहर में
झूठी शान के लिए ,कर्ज लेना भी नहीं समझते लाचारी।

अकेला है हर शख्स शहर में, फिर भी गुमान है खुद पर,
जमूरा बन गया जमाने का, खुद को समझता है मदारी।

©Kamlesh Kandpal
  #standingalone