नाज़नीन के नखरे सब के सर आँखों पर क्या रसिया क्या काजी अचारी हुए सोने मुखरे तलक चर्चा सीमित न रहा उनके भौंहें के भी तरफदारी हुए राह चलते मजनूओं की औकात क्या सामने बादशाह भी चाहत में भिखारी हुए भाला बर्छी चलाने की जरूरत न इन्हें इनके नैना हीं चोखी कटारी हुए रात जैसी अँधेरी बालों की न पूछ खुली जुल्फें आशिकों के फुलवारी हूए कातिलाना अदाओं की बात विलग, इनके त्योरी की चढ़ावत हीं चिंगारी हुए थिरकते उनके जो तन, पर न जाये कफ़न नाज़रिन पे ये नचावट भी भारी हुए.... गुस्ताखी माफ़ #श्रृंगार_खिचड़ी।