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मैं मजदूर हूँ खुबसूरती दिखती मकानों की मेहनत क्या

मैं मजदूर हूँ

खुबसूरती दिखती मकानों की
मेहनत क्या देखा है किसी ने
हाथों से लहू बहते
टपकते पसिने पुरे बदन से 
जलती धुप बदन जलाती
ठंडी हवा पैर जमाती
फिर भी न रूकना 
करते जाना है काम
आराम सो जो मैं बैठ गया
क्या खाऊँगा राम
कई मकानें खडी कर दी 
झोपड़ी का भी नसीब नहीं
हाँ माना मजबूर हूँ
पर मैं मजदूर है
नहीं मिलता सम्मान कहीं भी
फिर भी गर्व है भारत का स्तंभ हूँ
हाँ मैं मजदूर हूँ

©कलम की दुनिया
  #मजदूर