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ख़्वाब बुन रहे थे कहानियाँ रातें, नींदों से चुराकर

ख़्वाब बुन रहे थे कहानियाँ
रातें, नींदों से  चुराकर के
किसी खयाल में जगा गए तुम
भीगी पलकों को याद,आकर के
मैं,रोया बहुत अर्से बाद,इस कदर
ज़िन्दगी, छोड़ गई मुझे,जगाकर के
की,ख़्वाब बुन रहे थे कहानियाँ
रातें, नींदों से चुराकर के

©paras Dlonelystar
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