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सबना का सहो एकु है सद ही रहै हज़ूरि।। नानक हुक्म न

सबना का सहो एकु है सद ही रहै हज़ूरि।। नानक हुक्म न मनई तां घर ही अंदर दूर।। हुक्म भी तिन्ना मनाईसी जिनको नदर करे।। हुक्म मन्न सुख पाया प्रेम सुहागन होये।।

अर्थ- वह सब का खसम पति निराकार प्रकाश रूप प्रभु एक है जो सदा ही हाज़र-नाज़र हज़ूर है।।। पर नाम को न मानने यानी एकदृष्ट करने की कला को न मानने के कारण साहमने रहते परमात्मा को न देख सकने कारण जीवमन खुद को उससे दूर महसूस करता है।। हुक्म यानी एकदृष्ट करना भी उन्हें ही देता है जिनकी दृष्टि को उसने खोलना होता उन मनो पर खुश होकर उन्हें वह दृष्टि शरीरिक आँखों मे दे देता है यानी एकदृष्ट करने की विधि अपने सन्तो द्वारा दे देता है।। फिर वह विधि को सुन कर(सुनिऐ सिद्ध पीर सुर नाथ) मान कर(मंनै की गत कही न जाई) मन को वह प्रकाश के दर्शन का सुख प्राप्त होता है फिर उस प्रकाश से मन द्वारा जो नेत्रों में बैठा है देख-2 कर प्रेम डालना होता है फिर वह मन प्रकाशमान होकर परमेश्वर की सुहागन यानी परमेश्वर को परवान मन जीव इस्त्री के रूप में परमेश्वर द्वारा चुन ली जाती है।। जैसे दुन्यावी वर भी पसंदीदा वधु को चुनते हैं।।

©Biikrmjet Sing #सहो
सबना का सहो एकु है सद ही रहै हज़ूरि।। नानक हुक्म न मनई तां घर ही अंदर दूर।। हुक्म भी तिन्ना मनाईसी जिनको नदर करे।। हुक्म मन्न सुख पाया प्रेम सुहागन होये।।

अर्थ- वह सब का खसम पति निराकार प्रकाश रूप प्रभु एक है जो सदा ही हाज़र-नाज़र हज़ूर है।।। पर नाम को न मानने यानी एकदृष्ट करने की कला को न मानने के कारण साहमने रहते परमात्मा को न देख सकने कारण जीवमन खुद को उससे दूर महसूस करता है।। हुक्म यानी एकदृष्ट करना भी उन्हें ही देता है जिनकी दृष्टि को उसने खोलना होता उन मनो पर खुश होकर उन्हें वह दृष्टि शरीरिक आँखों मे दे देता है यानी एकदृष्ट करने की विधि अपने सन्तो द्वारा दे देता है।। फिर वह विधि को सुन कर(सुनिऐ सिद्ध पीर सुर नाथ) मान कर(मंनै की गत कही न जाई) मन को वह प्रकाश के दर्शन का सुख प्राप्त होता है फिर उस प्रकाश से मन द्वारा जो नेत्रों में बैठा है देख-2 कर प्रेम डालना होता है फिर वह मन प्रकाशमान होकर परमेश्वर की सुहागन यानी परमेश्वर को परवान मन जीव इस्त्री के रूप में परमेश्वर द्वारा चुन ली जाती है।। जैसे दुन्यावी वर भी पसंदीदा वधु को चुनते हैं।।

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