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मैं मुसलसल चलता जा रहा हू मंज़िल की ओर, मुझे गिराने

मैं मुसलसल चलता जा रहा हू मंज़िल की ओर,
मुझे गिराने मे लगे है अपने ही कुछ लोग,
ये कैसा मोह है मुझसे,मे समज न पाया,
लेकिन मुझे गिराने मैं उनको बड़ा मजा आया । मे मुसलसल चलता जा रहा हू मंज़िल की ओर,
मुझे गिराने मे लगे है अपने ही कुछ लोग,
ये कैसा मोह है मुझसे,मे समज न पाया,
लेकिन उनको मुझे गिराने मे बड़ा मजा आया ।
मैं मुसलसल चलता जा रहा हू मंज़िल की ओर,
मुझे गिराने मे लगे है अपने ही कुछ लोग,
ये कैसा मोह है मुझसे,मे समज न पाया,
लेकिन मुझे गिराने मैं उनको बड़ा मजा आया । मे मुसलसल चलता जा रहा हू मंज़िल की ओर,
मुझे गिराने मे लगे है अपने ही कुछ लोग,
ये कैसा मोह है मुझसे,मे समज न पाया,
लेकिन उनको मुझे गिराने मे बड़ा मजा आया ।