लिखती हूँ तुम्हें दिन -रात ज़हन के पन्नों पर हर्फ़ दर हर्फ़ उतारती हूँ कभी काफ़िया,कभी रदीफ़ कभी मतला, कभी मकता में ढालकर एक मुकम्मल सी ग़ज़ल बनाती हूँ #काफ़िया #मकता #मतला #yqdidi