सांसे चलती है, शायद दिल भी धड़कता है वो तेरी याद का लम्हा अब झरोखे से गुजरता है तेरे इत्र की महक मुझे हररोज तेरे पास लाती है बेचैन इन आँखों को रोज रोज पिघलाती है शब की बूंद मेरी आंखों की बूंदे देख मुस्कुराती है दिल की तंग गलियों में एक छोटीसी झोपड़ी मुझको दिखती है मेरा खोंखलासा महल देख मुझसे मेरा वजूद पूछती है तो क्या हुआ गर मैं तुझ जैसी नही? तो क्या हुआ गर मैं तेरे खयालोसी नही? पर मैं भी तो मैं हूँ, तो क्या हुआ गर प्यार किया था ? थोडासा प्यार मैंने खुद से भी तो किया है, कोई वादा मेरी खुद्दारी से भी तो हुआ है! दिमाग तो तालिया बजाता है की क्या कदम उठाया है अपनी खुद्दारी को तूने क्या खूब सराहा है पर दिल नही मानता वो अब भी तुम्हारी इत्र में खोया है, झरोखे से बार बार तुम्हारी याद को देखता है कहता है क्या करोगी इस गुरुर का उस मीठी मुस्कान बिना क्या खुश होगी शब की उन बूंदो के बिना? जवाब तब भी नही था जब तुम गए थे, जवाब अब भी नही है जब तुम नही हो, और न शायद कभी होगा अब बस मैं ही घूमती हूँ उन तंग गलियों में इन तन्हाइयो के शोर में तेरी खुशबाश झोपड़ी में कभी मुझे भी मेरी रज़ाई मिल सके इस आस में For the one who left !!