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जिसे भी चाहा मैंने वो भगवान हो जाता है यूँ उलझा है

जिसे भी चाहा मैंने वो भगवान हो जाता है
यूँ उलझा है वो मुझमें हाथ खीचू तो लहूलुहान हो जाता है,

उसकी अधूरी ख्वाहिशें मेरी रातों की बीनाई खा जाती हैं,
और मैं चराग जलाऊँ तो वो परेशान हो जाता है,

रौशनी आती है चली जाती है अपनी मर्जी से
मोहब्बत में दिल जैसे रौशनदान हो जाता है,

मैं और क्या जोड़ू गजल में, उस गैर मक्ते के बाद
सारी दौलत मेरी और कुर्की का फरमान हो जाता है,

मोहब्बत मांगी थी मैंने और तिमारदार दिया रब ने 
जिसे आंचल समझा है वो दस्तरखान हो जाता है, 

हम शायरों के मसले ही अजीब है कोई अपनाए कैसे 
कोई परीजात साथ में बैठे तो किरदार अपना लोबान हो जाता है,

©Sandeep Albela
  लोबान सा किरदार..
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