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विकास विकास की इबारत चमचमाती सड़के क्यूँ रो रही

विकास

विकास की इबारत 
चमचमाती सड़के 
क्यूँ रो रही हैं 
थका जिस्म औ
बोझिल सांसे लिये 
जिंदगी सो रही है 
कौन सा सपना 
कौन सी मंजिल 
कुछ भी तो नही 
वक्त के ठेले में 
लगा के पहिया 
खुद को ढो रही है 
क्या करोगे सुनकर 
कहानी उसकी 
रोक सकते हो 
बूढ़ी होती जा रही 
जवानी उसकी 
अरे छोड़ो मियाँ 
चलो चलें वहां 
जहाँ समाजवाद की 
सभा हो रही है। 
समाज के अंतिम व्यक्ति 
की बात करके 
कितनो की आँखे 
खुद को भिगो रही है। 

संजय श्रीवास्तव विकास
विकास

विकास की इबारत 
चमचमाती सड़के 
क्यूँ रो रही हैं 
थका जिस्म औ
बोझिल सांसे लिये 
जिंदगी सो रही है 
कौन सा सपना 
कौन सी मंजिल 
कुछ भी तो नही 
वक्त के ठेले में 
लगा के पहिया 
खुद को ढो रही है 
क्या करोगे सुनकर 
कहानी उसकी 
रोक सकते हो 
बूढ़ी होती जा रही 
जवानी उसकी 
अरे छोड़ो मियाँ 
चलो चलें वहां 
जहाँ समाजवाद की 
सभा हो रही है। 
समाज के अंतिम व्यक्ति 
की बात करके 
कितनो की आँखे 
खुद को भिगो रही है। 

संजय श्रीवास्तव विकास