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*सवैया* साँवर साँवर रूप अनूप,धरे सिर मोरपखा छवि छ

*सवैया*

साँवर साँवर रूप अनूप,धरे सिर मोरपखा छवि छाए।
पायन पैजनिया छनकै, लटकैं अलकैं सखि नीक सुहाए।
धूरि लगाय चलैं हँसि के,मनमोहनि मूरति चित्त चुराए।
काह कहौं छवि माधुरि को,हिय मे बसि के बहुतै तड़पाए।।

©Shilpi Singh
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