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अगर बचा सकते हो तो बचा लो अपने अंदर का थोड़ा सा आ

अगर बचा सकते हो तो बचा लो 
अपने अंदर का थोड़ा सा आदमी 
वह थोड़ा सा आदमी जिसके अंदर 
थोड़ी सी गैरत बची हो
वह थोड़ा सा आदमी जो 
थोड़ा-थोड़ा करके मर रहा है 
या थोड़ा-थोड़ा जी रहा है
वह थोड़ा सा आदमी 
जो भीड़ में खड़ा है 
फिर भी अकेला हैं
वह थोड़ा सा आदमी 
मिल जाता है अक्सर कतारों में
राशन की दुकानों में,
दिख जाता है अक्सर बाज़ारों में
रास्तों में चौराहों में,
अपनी बारी का इंतज़ार करता
तनहाइयों की भीड़ में गुम
दुनिया के मेलों में,
ज़िन्दगी का बोझ लदे
कभी बसों में, कभी रेलों में
मिल जाता है बस थोड़ा सा आदमी
थोड़ी सी खुशियां थोड़े से सपने
थोड़ी सी जरूरते  थोड़े से पैसे 
और इन्हीं से वह हो जाता है पूरा
पर वही थोड़ा सा आदमी 
जिसके थोड़े-थोड़े वोट से 
कोई बन जाता है बहुत बड़ा ।।।।
ये सच एक इंसानियत कि है!

©DEAR COMRADE (ANKUR~MISHRA) अगर बचा सकते हो तो बचा लो 
अपने अंदर का थोड़ा सा आदमी 
वह थोड़ा सा आदमी जिसके अंदर 
थोड़ी सी गैरत बची हो
वह थोड़ा सा आदमी जो 
थोड़ा-थोड़ा करके मर रहा है 
या थोड़ा-थोड़ा जी रहा है
वह थोड़ा सा आदमी
अगर बचा सकते हो तो बचा लो 
अपने अंदर का थोड़ा सा आदमी 
वह थोड़ा सा आदमी जिसके अंदर 
थोड़ी सी गैरत बची हो
वह थोड़ा सा आदमी जो 
थोड़ा-थोड़ा करके मर रहा है 
या थोड़ा-थोड़ा जी रहा है
वह थोड़ा सा आदमी 
जो भीड़ में खड़ा है 
फिर भी अकेला हैं
वह थोड़ा सा आदमी 
मिल जाता है अक्सर कतारों में
राशन की दुकानों में,
दिख जाता है अक्सर बाज़ारों में
रास्तों में चौराहों में,
अपनी बारी का इंतज़ार करता
तनहाइयों की भीड़ में गुम
दुनिया के मेलों में,
ज़िन्दगी का बोझ लदे
कभी बसों में, कभी रेलों में
मिल जाता है बस थोड़ा सा आदमी
थोड़ी सी खुशियां थोड़े से सपने
थोड़ी सी जरूरते  थोड़े से पैसे 
और इन्हीं से वह हो जाता है पूरा
पर वही थोड़ा सा आदमी 
जिसके थोड़े-थोड़े वोट से 
कोई बन जाता है बहुत बड़ा ।।।।
ये सच एक इंसानियत कि है!

©DEAR COMRADE (ANKUR~MISHRA) अगर बचा सकते हो तो बचा लो 
अपने अंदर का थोड़ा सा आदमी 
वह थोड़ा सा आदमी जिसके अंदर 
थोड़ी सी गैरत बची हो
वह थोड़ा सा आदमी जो 
थोड़ा-थोड़ा करके मर रहा है 
या थोड़ा-थोड़ा जी रहा है
वह थोड़ा सा आदमी