मर्द है ये सुबह से जो शाम के लिए लड़ता है, मां के प्यारी सी मुस्कान के लिए मरता है, हाथों में अंगार लिए होटों से प्यार बरसाता है, मर्द है वो जो बिना कुछ मांगे सब कुछ लुटाता है। दफ्तर की डांट जो दहलीज पर छोड़ जाता है, बेटी को गोद में लेके सारे गम भूल जाता है, प्यार का वो भी भूखा है फिर भी लाड दिखाता है, बीबी की पल्लू तो कभी मां के आंचल में छिप जाता है, मर्द है वो बिन कहे सब कुछ समझ जाता है। दर्द में भी मुस्कुराता है गिर के खुद संभल जाता है, कभी पिता कभी भाई कभी पति बन जाता है, सबकी खुशी के खातिर अपनी ख्वाहिशें दबाता है, खुद घुटनों के बल बैठा है पर सबको चलाता है, मर्द है वो खुद घिस कर सबको बनाता है। आह इसकी भी निकलती है पर दिखती नहीं है, खामोशियां कभी किसी की इस से छिपती नही है, इसका हंसना रोना यहां सब के लिए सही है, सच झूठ का पर्दा इनका अपनों के लिए ही है, मर्द है ये झुकते है पर बिकते नही है। मर्द है ये #yqbaba #yqdidi #yqquotes #yqaestheticthoughts #yqmard #yqbhaskar