चलता रहा उम्र भर रस्ता खत्म होते देखा नहीं मैंने मोहब्बत को मुकम्मल होते देखा नहीं वो जो इक चाँद दिखता है मेरी छत से मेरे सिवा उसको किसी ने देखा नहीं इक आईना है जिसमें हम दोनो नजर आते हैं उन आखों के बाहर दुनिया को मैंने देखा नहीं आदमी हूँ आदमी का लहजा बाखुबी जानता हूँ जब हो रंज दरमियां तो रिश्तों को बचते देखा नहीं फ़िराक़ अब जिंदगी मायने बदलने लगीं है ये दौर ही नया है इससे पहले देखा नहीं ©Prince_firaaq रस्ता