रास्तों का रास्तों से मिलना समझ नहीं आया पत्थरों को भी ठोकरों का मिलना समझ नहीं आया मैखानों की चांदनी जाम के प्यालों से ही बढ़ती है उन ज़मीनों पर टूटे कांच का मिलना समझ नहीं आया अंधेरों की शौक़ीन हो गयी थी वो शमा भी पर रौशनी के लिए उसका यूँ पिघलना समझ नहीं आया बड़ी महफूज़ रखी थी हमने रिश्तों की अल्मारी ये आस्तीनों से साँपों का निकलना समझ नहीं आया रास्तों के मोड़ भी एक दूसरे से मुह मोड़े हुए थे उस मोड़ पर उसका इत्तफ़ाकन मिल जाना समझ नही आया दो रोटी भी वो बाँट देती है हम दोनों में एक बराबर माँ का भूखे पेट भी मुस्कुराना समझ नही आया घबराई निगाहों को जो शीशे में उसने देखा मेरी उसका खुद सब समझ जाना समझ नहीं आया #nojoto #sanajhnahiaya