मुद्दत से आरज़ू थी कि जरा फुरसत हमें मिले फुरसत जरा मिली कि सब कुदरत से जा मिले लाशों के ढेर हैं कहीं कहीं सिसक रही जिंदगी जो बच गये उनको कभी अब न ऐसी वबा मिले बरसों से जिनकी जुबां पर आया न कलमा कभी आज वही खुदा ख़ुदा कर करके ख़ुदा से जा मिले ज़मी दफ्न को कम पड़ी कम पड़ीं लकड़ियाँ भी इस माहौल की मौत अब किसी को भी न मिले या ख़ुदा मेरे वतन की खुशियाँ हैं तेरे हाथ में इस माहे रमज़ान में हमको निजात ऐ वबा मिले ©khinyaram (LADLA) gora follow me ☹ मुद्दत से आरज़ू थी कि जरा फुरसत हमें मिले फुरसत जरा मिली कि सब कुदरत से जा मिले लाशों के ढेर हैं कहीं कहीं सिसक रही जिंदगी जो बच गये उनको कभी अब न ऐसी वबा मिले