टूटती नहीं हैं अब हाथो से रोटियाँ, कभी दुध में रोटियाँ भीगा दो न.. खीर पुड़ी भोग मत लगाना मुझको, ये वृद्धवस्था सहज बना दो न.. बड़े दुलार से पाला पोसा तुमको थोड़ा सा वो दुलार लौटा दो न, सबकुछ तो तुम्हें सौपा अपना.. ये वृद्धवस्था सहज बना दो न.. धीमे चलता हुँ लाठी लेकर, कुछ कदम थाम के हाथ चला दो न, तर्पण करो या न करो मेरा.. ये वृद्धवस्था सहज बना दो न.. क ख ग का ज्ञान तुम्हें पढ़ाया, एक काबिल इंसान बनाया.. पढ़ पाऊँ अखबार,देख सकूँ ये दुनिया, टूटा चश्मा ठीक करा दो न.. डपट तुम्हारी अक्सर हृदय भेदती, दो मीठे बोल मुझसे बतिया लो न.. दान पुण्य नाम से मेरे करो न करो, ये वृद्धवस्था सहज बना दो न.. नहीं स्वर्ग में चाह भोग विलास की, उपेक्षा के अपमान से बचा लो न.. पितृ पक्ष में श्राद्ध करो न करो.. ये वृद्धवस्था सहज बना दो न.. ©Chanchal's poetry #nojoto#oldage#writers#pitrapaksh#care