हवा में तैरते सत्य को मैंने पन्ने पर रख दिया, पन्ना आदतवश हर सड़क, गली, नुक्कड़ उसे पेश कर आया। लोगों को लगता है कि एक तमंचा लेकर घर से निकला आज़ाद पागल था, एक बम फेंककर फांसी चढ़ते युवा सनकी थे, डेढ़ किलो के दिमाग में किताबें भरकर पीढ़ी दर पीढ़ी चलते आते लोग व्यसनी थे। अनपढ़ देश मे कागज़-कलम दयनीय हैं खासकर कि तब जब देश में दर्जन भर लिपियाँ हो! कुछ लोग आज भी मानते हैं कि कागज़ और आवाजें बहुत कुछ कर सकती हैं। जिन्हें कुछ की काबिलियत नहीं वो सरकारी कर्मचारी बन गए। जो कुछ कर नहीं सकते वो प्रशासनिक अधिकारी बन गए, जिन्हें बाधाएं डालने की आदत है वो सतर्कता में चले गए, और हर मुँहचोर, सवालों से कई लेवेल ऊपर जाने के लिए नेता या मनोरंजन खोर बन गए। देश चुनौती के चु से परेशान नहीं है यहाँ दुख कुछ और है! ये जो मुंह अंधेरे हाथ में टोर्च लिए मुर्गे की आवाज में बांग देते हो, हमें पता है सवेरा और सूर्य कहीं और है। सवेरा कहीं और है