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समंदर........ तेरे ही अंदर-अंदर , मैं-तैरू मैं-डूब

समंदर........ तेरे ही अंदर-अंदर ,
मैं-तैरू मैं-डूबू...... कोई ना मुझको खींचे, 
किनारा............ है इतना दूर ये तेरा ,
पहुंचना............ है लागे मुश्किल मुझको ,
                  
सहारा.............. कोई न समझ में आए ,
डूबता-तैरता तैरता-डूबता....मैं खुद को और थकाता ,
ज़ुबा-पर....... है ऊपर वाले का नाम ,
आस है-आस है...... एक ही दिल में ,
आएगा........... कोई तो मुझको बचाने ,

आखिरी........ सांस थी अभी भी बाकी ,
 प्रभु-की.......... ज्योत ने मुझको जगाया ,
उजाला............ था मेरे चारों ओर में ,
कि-देखा........... ये तो बस सपना था इक ,,,, #dkpatelpoetry#समंदर
समंदर........ तेरे ही अंदर-अंदर ,
मैं-तैरू मैं-डूबू...... कोई ना मुझको खींचे, 
किनारा............ है इतना दूर ये तेरा ,
पहुंचना............ है लागे मुश्किल मुझको ,
                  
सहारा.............. कोई न समझ में आए ,
डूबता-तैरता तैरता-डूबता....मैं खुद को और थकाता ,
ज़ुबा-पर....... है ऊपर वाले का नाम ,
आस है-आस है...... एक ही दिल में ,
आएगा........... कोई तो मुझको बचाने ,

आखिरी........ सांस थी अभी भी बाकी ,
 प्रभु-की.......... ज्योत ने मुझको जगाया ,
उजाला............ था मेरे चारों ओर में ,
कि-देखा........... ये तो बस सपना था इक ,,,, #dkpatelpoetry#समंदर