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इन आशुओं की कीमत किसे पता होगा... ये दिल बहलाने के

इन आशुओं की कीमत किसे पता होगा...
ये दिल बहलाने के लिए थोड़ी है!
किसे पता कितने गम छुपे हैं एक ही बूंद में...
ये रेगिस्तान का बारिश थोड़ी है!

आशुओं के भी मुस्कान बड़ी खास होती है...
शायद ये दर्द - ए - जख्मों  का तिजोरी है! 
बिखरे हुए अल्फाजों के भीड़ को सिमटा के..
आशुओ के बाड आंखों से हो कर उतर जाते हैं।

ये होठ भी बड़ा प्यासी है...
एक ही बार में इसका प्यास मिटता नहीं है!
शायद एक वजह ये भी है...
आशुओं को लाइन में खड़ा कर देता है!

ऐसे कितने आंखें होंगे ना...
बिन बरसात के भीगते होंगे!
खुदा करे इस दर्द को कम...
शायद हम भी इनमें से एक हैं।

©Aparna Nayak
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