कि जो बाते मयस्सर थी मयस्सर हो रहीं हैं क्या कि मंजिल सामने है पर वो राहें मिल रही हैं क्या कि जिनसे सांस चलती थी महकती थी मेरी बस्ती बताओ ऐ मेरे यारा हवाएं चल रहीं हैं क्या #life #ग़लतहै जो बचपन मे बातें सोची जो मंजिल थी पहले सोची अब वो राह कहाँ पर गुम कहे चुनौती आओ तुम महकती थी फूल सी बस्ती जहां मुस्कान थी सस्ती वहां दर्द कहता है हमसे