जिस्म के तलबगार बहुत देखे, पत्थर होने को जी चाहता है, रूह ही मर गई लोगों की, खुद की रूह मारने को जी चाहता है। एहसास-ए-इश्क को जिस्म-फरोशी का नाम यों ही दे दिया, प्यार, मोहब्बत, इश्क़ जैसे लफ़्जों को दफ़नाने को जी चाहता है, नफ़रत का दिया नये ज़माने में रोशन होने का इशारा कर रहा है, ज़िन्दगी का ज़िन्दगी से विश्वास देख, शमशान होने को जी चाहता है। ज़िल्लतें ज़माने की बेइन्तहा यूँ सहन करनी मुश्किल होती जा रही है, ज़िन्दगी से बेज़ार हो खुद ही खुद का क़त्ल करवाने को जी चाहता है। कब तक यूँ ही तीरगी का मंज़र ज़माने का तआरुफ़ करवाता रहेगा, बस अब जहाँ को आफ़ताब से मुखा़तिब करवाने को जी चाहता है। चारों तरफ तन्हाई के मंजर का नज़ारा मौत सरेआम दिखाता है, बर्बादियों का ज़िक्र छोड़ बर्बादियों से नज़र मिलाने को जी चाहता है। भगवान् जाने कब थमेगी ये उभरती ग़लतफ़हमी की फैलती का़लिख, अब तो मौत के अन्दर से गुज़र कर ज़िन्दगी होने को जी चाहता है। #cinemagraph #तलबगार #तआरुफ़ #मुखातिब #आफ़ताब #ग़लतफ़हमी #yqhindi #bestyqhindiquotes