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इमारत इमारत बस इमारत नहीं होते इनमें कुछ उम्मीद,

इमारत 

इमारत बस इमारत नहीं होते
इनमें कुछ
उम्मीद, कुछ लगन कुछ जज्बा होते हैं
मेहनत ओर मोहब्बत से 
सज संवर कर जब एक दीवार 
अपने सर पे छत रखकर 
हमें पन्हा देती है 
उसे इमारत कहते हैं 

महलों कि चाहत तुम्हें मुबारक
अकसर हम जमीन पर लेटकर
खिड़की से जब जिंदगी को तलाशते हैं 
सर्दी, गर्मी, बारिश आके हमें 
गले लगाते हैं 
तुम्हें याद हो शायद
इस धरती को हम मां बुलाते हैं 

इमारत के ईट ओर पत्थरों से 
ज़मीं पर पड़े चटाई से 
इस तरह मोहब्बत है हमें
अकसर चांद सितारे भी हमें 
अपने रोशनी से आबाद करते हैं 
तुम क्या जानो इन 
रिश्तों के ताने-बाने को 
हम इसे अपनी मिल्कियत मानते हैं ।।

©Tafizul Sambalpuri #इमारत  shamawritesBebaak_शमीम अख्तर Anshu writer Yogendra Nath Yogi Sk Manjur दुर्लभ "दर्शन"

#इमारत shamawritesBebaak_शमीम अख्तर Anshu writer Yogendra Nath Yogi Sk Manjur दुर्लभ "दर्शन" #शायरी

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