कहाँ ज़रूरी कोई सलीका खुदा से मिलने को, महबूब की आँखों में देखो पूरा न सही थोड़ा तो नज़र वो आएगा | हर कोई मिला उसे बातूनी, कैसे समझे वो जज़्बातों को फिर, कि इश्क़ हैं आँखों का क़ायदा पर इज़हार तो जुबां से ही आएगा | मुस्कुराहटों की चादर के नीचे छुपाते हो अक्सर अपने दर्द का बिछौना, कि उसी बिछौने की सलवटों पर वो तुम्हे मुस्कुराता हुआ नज़र आ जाएगा। हाथ थामकर उसका अपने रेशमी हाथों में इक डोर बना बांध लो, जाओ कहीं दूर जो तुम चाँद जैसे, एक पल ही सही तू भी कहीं ठहर जाएगा | "मोहब्बत" नाम है कुछ मीठी तकरारों कुछ अलगाव के दर्द का, कि हमख्याल महबूब के साथ कहीं न कहीं कोई ख्याल टकरा ही जाएगा। Thank you Farida jee for permitting collab... Gazal likhna nahi aata mujhe bas ek koshish kee hai...aapko match karna to bahot mushkil hai... For better read कहाँ ज़रूरी कोई सलीका खुदा से मिलने को, महबूब की आँखों में देखो पूरा न सही थोड़ा तो नज़र वो आएगा |