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वह बेरोज़गार था, पर ख़ुद पर उसे विश्वास था, रोज़ निकल

वह बेरोज़गार था,
पर ख़ुद पर उसे विश्वास था,
रोज़ निकल जाता काम की तलाश में,
लेकर खाली झोला अपना,
सोचता हर रोज़ वह बस एक ही बात,
शायद आज मिल जाए उसे कोई काम,
भर कर लाऊँगा झोला अपना,
जब हो जाएगी शाम,
गुज़ारिश करता हाथ जोड़ता,
फिर हो जाती शाम,
लौट आता लेकर अपना खाली झोला,
पीता मटके का पानी,
भूख अपनी कर लेता शांत,
नज़रे उसकी टिकी रहती खाली झोले पर,
सो जाता फिर मन में इक आशा लेकर,
शायद कल सुबह मिल जाए उसे कोई काम,
भर कर लाए वह अपना झोला,
हो जाए जब शाम,
वह बेरोज़गार था ।

©purvarth #berojgar
वह बेरोज़गार था,
पर ख़ुद पर उसे विश्वास था,
रोज़ निकल जाता काम की तलाश में,
लेकर खाली झोला अपना,
सोचता हर रोज़ वह बस एक ही बात,
शायद आज मिल जाए उसे कोई काम,
भर कर लाऊँगा झोला अपना,
जब हो जाएगी शाम,
गुज़ारिश करता हाथ जोड़ता,
फिर हो जाती शाम,
लौट आता लेकर अपना खाली झोला,
पीता मटके का पानी,
भूख अपनी कर लेता शांत,
नज़रे उसकी टिकी रहती खाली झोले पर,
सो जाता फिर मन में इक आशा लेकर,
शायद कल सुबह मिल जाए उसे कोई काम,
भर कर लाए वह अपना झोला,
हो जाए जब शाम,
वह बेरोज़गार था ।

©purvarth #berojgar