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तेरे मिलने से मेरा सुकूँ भी खुशहाल हो जाता है। ज

तेरे मिलने से मेरा सुकूँ  भी खुशहाल हो जाता है। 
जिसको भी ज़िन्दगी छूती है क़माल हो जाता है । 

कौन  दफ़न  है  मुझ  में , ये  किसकी  लाश  है 
मुझ में कौन है जो हर बार बेमिसाल हो जाता है । 

राम ने ज़िन्दगी दी  थी  ,मैंने नरक कर डाली है
ये  गुस्सा क्यों है मुझमें जो ज़लाल हो जाता है । 
 
बस  एक ग़ज़ल  लिखनी थी मुझे तो ज़िन्दगी पे
फिर क्यों हर शेर पे उसका रंग लाल हो जाता है। 

मतला बनाते बनाते सुबह से शाम हो जाती है
ख़्याल ए मिसरा बेचारा ऐसे हलाल हो जाता है । 

ये  काफ़िये  को  जाने  क्या  दुश्मनी  है मुझ से
तू  दिखती नहीं ,लफ्ज़ों का अकाल हो जाता है। 

और  तो  और  लोग पूछते रहते है मुझसे नाम तेरा
ज़िन्दगी बोल- बोल के मेरा चेहरा गुलाल हो जाता है। 

कहता नहीं हूँ  किसी से के बेकार हूँ मैं 
माँ रोने लगती है हाल बेहाल हो जाता है । 

इस लाश को भी मुझे देना पड़ता है दाना- पानी
मैं काम माँगता हूँ तो शहर में बवाल हो जाता है । 

बाप की पगड़ी से माँ ने जो दस्तार निकाल दी
रो -  रो  के  वेबा  का  बुरा  हाल  हो  जाता है। 
 
इस लाश को भी मैं इत्र लगा के रखता हूँ
कौन सी ख़ुशबू है ये जहां में सवाल हो जाता है । 

जब से जना तब से कर रहा ज़िन्दगी ओ ज़िन्दगी
मिलता कुछ नहीं और सतिन्दर निढाल हो जाता है ।
©️✍️ सतिन्दर
 नज़्म हो जाता है  #kuchलम्हेंज़िन्दगीke #satinder #सतिन्दर #नज़्म #होजाताहै #ज़िन्दगी Azin Irshad saurabh Srivastava "निराला" राज कबीर Raj Siddhi Author Purav Zindagi
तेरे मिलने से मेरा सुकूँ  भी खुशहाल हो जाता है। 
जिसको भी ज़िन्दगी छूती है क़माल हो जाता है । 

कौन  दफ़न  है  मुझ  में , ये  किसकी  लाश  है 
मुझ में कौन है जो हर बार बेमिसाल हो जाता है । 

राम ने ज़िन्दगी दी  थी  ,मैंने नरक कर डाली है
ये  गुस्सा क्यों है मुझमें जो ज़लाल हो जाता है । 
 
बस  एक ग़ज़ल  लिखनी थी मुझे तो ज़िन्दगी पे
फिर क्यों हर शेर पे उसका रंग लाल हो जाता है। 

मतला बनाते बनाते सुबह से शाम हो जाती है
ख़्याल ए मिसरा बेचारा ऐसे हलाल हो जाता है । 

ये  काफ़िये  को  जाने  क्या  दुश्मनी  है मुझ से
तू  दिखती नहीं ,लफ्ज़ों का अकाल हो जाता है। 

और  तो  और  लोग पूछते रहते है मुझसे नाम तेरा
ज़िन्दगी बोल- बोल के मेरा चेहरा गुलाल हो जाता है। 

कहता नहीं हूँ  किसी से के बेकार हूँ मैं 
माँ रोने लगती है हाल बेहाल हो जाता है । 

इस लाश को भी मुझे देना पड़ता है दाना- पानी
मैं काम माँगता हूँ तो शहर में बवाल हो जाता है । 

बाप की पगड़ी से माँ ने जो दस्तार निकाल दी
रो -  रो  के  वेबा  का  बुरा  हाल  हो  जाता है। 
 
इस लाश को भी मैं इत्र लगा के रखता हूँ
कौन सी ख़ुशबू है ये जहां में सवाल हो जाता है । 

जब से जना तब से कर रहा ज़िन्दगी ओ ज़िन्दगी
मिलता कुछ नहीं और सतिन्दर निढाल हो जाता है ।
©️✍️ सतिन्दर
 नज़्म हो जाता है  #kuchलम्हेंज़िन्दगीke #satinder #सतिन्दर #नज़्म #होजाताहै #ज़िन्दगी Azin Irshad saurabh Srivastava "निराला" राज कबीर Raj Siddhi Author Purav Zindagi