सवारी निकली है ******* आज मेरे मैयत की सवारी निकली है जीवन पे मृत्यु की साझेदारी निकली है कल तलक बंधे थे जो सांसो की डोर से आज फलक को छूने की खुमारी निकली है सांसो के सरगम ने नचाया,तवायफ सा सीने के धड़कन ने फंसाया,सजायफ सा बेबाक जो हुआ तो,ये तैयारी निकली है अंत का अनंत से वफादारी निकली है रुखसत के सफर में,तुम हो न हो सामिल फिर न कहना कि यारो से, गद्दारी निकली है मुमकिन है जो अदा दिखाया न किसी को आज उस अदा की अदाकारी निकली है फेंक देना एक मुट्ठी,रेत मेरे कब्र पे आमीन कह कुबूलना,मेरे इस सफर को बैचेन था,अमन से क्या यारी निकली है हाँ ये तेरे दोस्त की,खुद्दारी निकली है ये जो मेरे मैयत की सवारी निकली है दिलीप कुमार खाँ "अनपढ़" #सवारी निकली है