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जिस्म रुहानी है फिर ना जाने क्यों बातों में बेइमा

जिस्म रुहानी है फिर ना जाने 
क्यों बातों में बेइमानी है
टुकड़े टुकड़े सबको जोड़े थे फिर भी न जाने
 क्यों अपनो को अपनो में ही आग लगानी है
आंखों में बेशर्म का पर्दा लिए ना जाने क्यों 
लोगो को जिंदादिली दिखानी है
हम तो थे ही शरीफ़ लोगो को उनकी ही 
अदा से जवाब दिए तो हर जगह
हमारी ही हमारी बदनामी है।

©–Varsha Shukla
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