महफिल ख्वाबे इश्क की काश यह शाम थम जाए, शाम की लाली मेरा नूर बन जाए। तू वहाँ है, मै यहाँ ए दिलबर, यकायक तू यहाँ प्रत्यक्ष हो जाए। दूरियां बर्दाश्त नहीं हर पल, बिन अंगीठी ही अगन लग जाए। एक हल्की सी है सनसहाट, हर दस्तक मेरी धड़कन बन जाए। जो सामने तेरा चहरा आ गया, अब हकीकत ख्वाब न बन जाए। चुटकी काटकर देखूं ज़रा, यह महफिल ख्वाबे इश्क की थम जाए। #kkpc23 #collabwithकोराकाग़ज़ #कोराकाग़ज़ #विशेषप्रतियोगिता #ख्वाबोंवालाइश्क #गज़ल